वो कस़क जो मन में थी दिनों से,
गुप्प अँधियारे-सी जो गली लगती थी।
मिली परछाई जैसे मुझे एक नई हो,
मिला था तू जब, खुद को पा लिया था।
वो तम-सलिखे स्याह पन्नों में,
नीब़ कलम की रूक कर कहा करती थी।
कहाँ फिरा तू भटकता भँवर में,
लाँघ चौखट, कभी धर भी आया था?
बहाने कई लाख़ तेरे बनाने की फ़ितरत,
मन को ठेस कई बार पहुँचाया करती थी।
कौन है तू, पता क्या तेरा?
जुटा हिम्मत, कभी सच को भी अपनाया था तूने?
गुज़रती राहों में तू बिस्मिल बिस्मिल,
रोक किसी अजनबी को दर्द अपना सुनाया करती थी।
पर वक़्त ने बदला जिसे, बूढ़ा किया,
उस माँ की गोद में सर रख कभी दो आँसू बहाया था तूने?
दफन ज़िगर तले वो राज़ मतलबी,
लिखकर तकिये के नीचे छुपाया करती थी।
वो गुलज़ार चेहरा जिससे थे सब रूबरू,
कभी उसे अपनी उस दूसरी शख्शियत से मिलवाया था तूने?
बर्फ पिघलकर, पानी बनकर,
आग, मुसलसल, नफरतों की बुझाया करती थी।
वो बुलंद होते नारे जो दूर क्षितीज तक सुनाई देते थे,
कभी उनकी सदाओं में भी क्या सुर अपना मिलाया था तूने?
वो छोटी प्यारी सी मासूम बच्ची,
बचपन में दरवाज़ा घर का तेरे जो खटखटा कर भाग जाया करती थी।
उलझनों से निकल अपनी, खुद को आवाज़ देकर
कभी हाथ थाम उसका गोद में अपनी उसे क्या बिठाया था तूने?
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Hi, my name is Abhishek Kumar. I am a law student, currently pursuing B.B.A., LL.B. from CNLU, Patna. I am a Movie Buff for the major part. For the rest, I channel my qi through writing, building stuff and reading.
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