अक्सर रास्तों पर जाते हुए काफी चीजों पर, लोगों पर हमारी निगाहें पड़ती है ।
उसी प्रकार मेरी भी नज़र आज कुछ बनते – टूटते घरों पर ठहर गई । रोज़ की तरह सुबह घरके रोज़ाना जरूरतों के समान के लिए निकला था और पड़ोस में ही एक बना बनाया घर टूट रहा था , उसको फिर वह तोड़कर दोबारा बना रहे थे ।
तो ना जाने क्यूं में वहां रुक गया यह देखने के लिए और देखते ही मन में ख्याल आया कि किसी जमाने में इसके मालिक ने इसे बनाया होगा तो यही सोचकर बनाया होगा की यह बेहतर बना है अपने समय के हिसाब से । फिर कुछ सालों बाद आज उसे तोड़कर दोबारा बनाया जा रहा है क्यूंकि अब यह आज के समय के हिसाब से पुराना हो चुका है। उतना खास नहीं रहा जितना हुआ करता था ।
मतलब कितनी अजीब बात है कि किसी समय जो ‘खास’ नज़र आता था आज उसमें भी कमी है और वह उतना ‘बेहतरीन’ नहीं रहा जितना था कभी, उसे तोड़कर और बेहतर बनाने का प्रयास हो रहा है।
और ऐसा ही हमारे साथ भी होता है, हमें भी खुद को समय के साथ निरंतर परिवर्तन में रखना पड़ता है , पहले से और ज्यादा उत्तम बनने के लिए । हमें भी खुद के मन में बनाई गई पुरानी बंदिशों को तोड़कर और बेहतर बनने के लिए अलग अलग प्रयासों से गुजरना पड़ता है ताकि हम जो कल थे हमारा आज उससे बेहतर हो, और हमारा आने वाला कल आज से भी बेहतर।
और इतना सोच कर, मुस्कुरा कर मैं घर लौट आया ।
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