आज ग्यारह जुलाई है। सुबह से “वैदेही” पूरे घर में उछल कूद कर रही है। आज वो बहुत खुश है। हो भी क्यों न? आज उसका जन्मदिन जो है। आज से वैदेही सात साल की पूरी हो जाएगी। वैदेही ने अपने सारे दोस्तों को शाम को घर बुलाया है।
आज सुबह से मम्मी का फोन लेकर सबको काॅल कर दिया है, “मेरा जन्मदिन है सबको आना है।”
वैदेही के घर से तीन घर आगे एक छोटा सा कच्ची छत वाला मकान है वहां निम्मी रहती है।
निम्मी के घर वाले गरीब हैं। निम्मी वैदेही की सबसे अच्छी दोस्त है। शायद निम्मी गरीब है, इसलिए वैदेही को उससे ज्यादा लगाव है। वैदेही अपने सारे पुराने कपड़े, खिलौने, सब निम्मी को दे देती है। निम्मी को अपने साथ घर ले आती साथ में खाना खिलाती है। हालांकि वैदेही के पापा को ये बात अच्छी नहीं लगती, लेकिन बच्ची की खुशी के कारण, वो उसके सामने कुछ नहीं कहते।
वैदेही की मां से कहते हैं, “देखो रीमा ये इस लड़की का घर आना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। इन लोगों का कोई भरोसा नहीं किस चीज पर नियत ख़राब कर लें।”
रीमा समझाती है, “आप परेशान ना होइए। अभी बच्चे हैं वो।”
आज वैदेही निम्मी के घर के तीन चक्कर लगा चुकी थी, “देख निम्मी आज कोई बहाना नहीं चलेगा। आज तुम्हें आना पड़ेगा मेरी बर्थ-डे पार्टी है। आंटी, प्लीज़, आप इसे साफ कपड़े पहना कर भेज दीजिएगा।”
वैदेही जानती थी निम्मी के पास पार्टी के लायक कपड़े नहीं हैं। उसने अपनी नयी फ्राक निम्मी को चुपके से दे दी, और बोली, “देख निम्मी अब कोई बहाना नहीं अब तो आना ही पड़ेगा।”
शाम हुई वैदेही के सारे दोस्त आ गए। गरिमा, नाज़ो, लकी, निखिल, मायरा, लवी और सारे आ चुके थे, लेकिन वैदेही की निगाहें अभी भी रस्ते पर ही थीं। मां बोली, “बेटा केक काटिए। देखिए सब लोग आ गए। देखो आज तो पापा भी आफिस से जल्दी आ गाए।”
वैदेही विनती करती है, “प्लीज़ मम्मा! दो मिनट और। मेरी निम्मी अभी तक नहीं आई।”
तभी तक में, निम्मी को गेट पर देख वैदेही चहक उठी “देखो मम्मा निम्मी आ गई।”
निम्मी की फ्राक देख रीमा की आंखें फटी रह गई। ये तो वही फ्राक है जो ये वैदेही के लिए माल से लाए थे। ये डेढ़ हज़ार की फ्राक है। लेकिन वो समझ गई ये काम वैदेही का ही है। रीमा ज़हर का घूंट पीकर चुप रही, केक काटा गया, सब ने डांस किया, फिर एक-एक करके सब घर चले गए।
सबने मंहगे-मंहगे गिफ्ट दिए थे। किसी ने रोबोटिक डाल दी, किसी ने स्टडी किट दिया। निम्मी के पास कुछ था। नहीं देने के लिए सिर्फ एक जोड़ी पुरानी पायलें थी, जिसमें घुंघरू लगे थे। वैदेही जब भी निम्मी के घर खेलने जाती तो पायलें पहन कर पूरी घर में उछलती। फिर निम्मी को वापस कर के अपने घर आ जाती। निम्मी ने वही पायलें गिफ्ट करी तो वैदेही ख़ुशी से पागल हो उठी।
वैदेही “निम्मी अब ये पायलें मेरी हो गईं ?”
निम्मी “हाँ वैदेही। ये तुम्हारा बर्थडे गिफ्ट है।”
वैदेही ने निम्मी को गले लगा लिया, “थैंक यू, निम्मी।”
निम्मी अपने घर चली गई। वैदेही सारे क़ीमती खिलौने छोड़ कर पायलों में मग्न हो गयी। पूरे घर में पायलों की छनकार गूंज रही थी। उन्हीं पायलों से खेलते खेलते वोदेही को नींद आ गई और वो सो गयी।
दूसरी सुबह उठी तो सबसे पहले उसकी नज़रें पायलों पर गई। पैर देखते ही वैदेही के होश उड़ गए। पैरों में पायल नहीं थी। वैदेही बहुत देर तक पूरे कमरे में ढूंढती रही। सारे बिस्तर तहस नहस, कमरे की सारी चीजें बिखर गई, फिर भी पायल नहीं मिला। अब वैदेही का रोना चालू हो गया। अब वो पागलों की तरह दौड़ती हुई, रोती हुई पायलें ढूंढने लगी। बिना कुछ बताए बिना किसी से कुछ कहे। वैदेही के पीछे मम्मी, पापा, दादी, वैदेही का बड़ा भाई दौड़ने लगे।
सब पूछते “बेटा क्या हुआ? क्या ढूंढ रहे हो? क्यों रो रहे हो?”
वैदेही रोती जाती भागती जाती “पायल गुम गई मेरी!”
मांँ ने पूछा, “कौन सी पायल बेटा।”
“वही जो कल रात निम्मी ने दिये थे।”
पापा ने रोका “रुको बेटा। परेशान न हों! वो कहांँ गुम गयी, बच्चा, मुझे बताओ आप।
वैदेही सिसकते हुए बोली, “मैं तो पायल पहन के सोई थी, पता नहीं कहां गुम गयी। मेरी पायल ढूढ़ दीजिए ना पापा प्लीज, सिसकी लेते हुए।”
सब ढूंढने लगे। बिस्तर कई बार देखें गये। पूरा कमरा, पूरा घर सबने कयी बार ढूंढा। पापा आफिस भी नहीं जा पाए। वैदैही के चेहरे पर उदासी बढ़ रही थी।
पापा ने कहा, “कोई नहीं बेटा चलिए हम दुकान से दूसरी ले आते हैं।”
वैदेही तुनक कर कही, “नहीं मुझे वही पायल चहिए पापा। वो मेरी निम्मी ने मुझे गिफ्ट की थी”
ये कह कर वो और फूट कर रोने लगी, “पापा मुझे वही पायल चहिए। प्लीज़ ढूंढ दीजिए। मेरी निम्मी ने पहली बार मुझे गिफ्ट दिया है। मम्मा आप कहिए ना पापा को, वो पायलें मुझे बहुत प्यारी है।”
जैसे-जैसे वक़्त बीत रहा था, वैदेही का मन बैठ रहा था। सुबह सात बजे की उठी लड़की ग्यारह बज चुके थे, कुछ खाये-पिये बिना सिर्फ पायलों के लिए रोए जा रही थी।
कभी-कभी पापा को गुस्सा भी आ जाता। इतनी छोटी सी चीज के लिए रो रही है। ये पागल हो गई है।
बारह बजने वाले थे वैदेही थक गयी थी रोते रोते। रोने से उसकी आंखें सूझने लगी थीं। थकान और रोने की वज़ह से वो फिर से सोने लगी थी। अचानक मां की गोद से उठ कर कमरे की तरफ भागी।
“मम्मा-मम्मा!” सब उसके पीछे भागे। वो गयी और अपने स्कूल बैग में हाथ डाला और पायलें मिल गई, “मम्मा वो मैं… वो मैं ना भूल गयी थी मैं जब रात में सोने गई थी ना तो पायलें बैग में रख दीं थीं कोई चोरी ना कर लें।”
वैदेही बड़ी मासूमियत और उत्साह से बोली।
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