
लिखी मैंने जब भी मुहब्बत की ग़ज़लें, तुम्हें सोच कर सारे मिसरे लिखे, हैंये जो मेरे लहज़े में नमकीनियां हैंये, पाईं हैं मैंने तेरे होंठ छू कर। तुम्हें है ख़बर बर्फ़ जमती है कैसे ? ये नज़रों में तेरी है जादू कुछ ऐसा, ठहर जाती है कायनातें ये सारी, मगर फिर तेरी गर्म सांसों को छू कर, पिघल जाता हूं मैं ये दुनिया है चलती । ये पेड़ों से लटके हुए फल हैं जो भी, ये कानों के तेरे ही झुमके हैं जाना, मगर है जलन मुझको झुमकों से तेरे, मचल कर ये गर्दन तेरी चूमते हैं, वहीं पर जहां एक हल्का निशां है, निशां जो मुहब्बत का मेरी बयां है। है थोड़ी सी नफरत तेरी जुल्फ से जो, लटक कर तेरे गाल को चूमती है, वही जिसको छूने से रोका था तुमने, सुनो ना मुंहासे निकल आएंगे, जान समझा करो तुमतो बहतर है होठों पे बोसा करो तुमसुनो! अपनी जुल्फों को रोका करो तुम।
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