Written by Writer Vishal Singh and Edited by Editor Mrinali Jadhav
लिखी मैंने जब भी मुहब्बत की ग़ज़लें, तुम्हें सोच कर सारे मिसरे लिखे हैं, ये जो मेरे लहज़े में नमकीनियां हैं, ये पाईं हैं मैंने तेरे होंठ छू कर | तुम्हें है ख़बर बर्फ़ जमती है कैसे ? ये नज़रों में तेरी है जादू कुछ ऐसा, ठहर जाती है कायनातें ये सारी मगर, फिर तेरी गर्म सांसों को छू कर | पिघल जाता हूं मैं ये दुनिया है चलती, ये पेड़ों से लटके हुए फल हैं जो भी, ये कानों के तेरे ही झुमके हैं जाना मगर है, जलन मुझको झुमकों से तेरे मचल कर | ये गर्दन तेरी चूमते हैं वहीं पर जहां एक हल्का निशां है, निशां जो मुहब्बत का मेरी बयां है। है थोड़ी सी नफरत तेरी जुल्फ से, जोलटक कर तेरे गाल को चूमती है| वही जिसको छूने से रोका था तुमने, सुनो ना मुंहासे निकल आएंगे| जान समझा करो तुमतो बहतर है होठों पे बसा करो तुम, सुनो! अपनी जुल्फों को रोका करो तुम।
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