कल मौन थे तुम,आज भी मौन हो|
बताओ, क्या बदला फिर?
कुछ मोमबत्तिया जल गई, कुछ जल रही हैं|
बताओ, क्या बदला फिर?
धृस्त्रष्टा भी मौन थे, थे मौन पितामह भी|
है मौन संसद आज, और मौन सांसद भी|
थे धर्मराज वो, जिसने दाव लगाया था|
सन्नाटा था पूरे भवन में, केवल विदुर चिल्लाया था|
बाल खिंचती द्रोपती का, वो चीर न रोक सका ,पर|
आवाज़ उठा के वो सभागारों को लज्जित छोड़ सका|
द्रोपती को साहस दिया उसने, उसने पश्चयताप किया|
वो तो धर्म के मार्ग पे चला, बताओ तुमने क्या किया|
तुम मोमबत्तिया जला रहे,अखबारों को मज़ाक बना रहे|
दरिंदगी दिखा रहे उनकी, पर आवाज़ न उठा सके|
उसकी माँ से सवाल किए, उसके पिता का हाल पूछा|
जिन नेताओं के पीछे दुम हिला रहे, क्या कभी उनसे भी कोई सवाल पूछा?
पूछा होता यदि की कब तक चलेगा ये , जाना होता यदि की कब तक रुकेगा ये|
बताया होता उनको , की साहेब ये गलत है रुकवा दो|
अपनी राजनीति छोड़कर थोड़ा इसके सुलझा दो , कहते उनसे-
की जिस राम-सीता की प्रतिमा तुम बना रहे, कम से कम पहले लोगो को सीता की पूजा करना तो सिखा दो …
क्या जिस दिन खुद पे आएगी, उस दिन मौन हटाओगे?
या जब खुद की बेटी जाएगी, उस दिन मौन हटाओगे?
क्या मौन हटाओगे तुम उस दिन, जब सब बर्बाद हो जाएगा?
जब पूरा जग नंगा होगा, वही इतिहास दोहराया जाएगा?
अरे मौन हटाना होगा तुमको, दरिंदो को सजा दिलवाने को|
मौन हटाना होगा तुमको, खुद की बेटी बचाने को|
अरे, मौन हटाओ तुम, राजनेताओं को सबक सिखाने को|
भारत जो भूल गया है, वो संस्कार सिखलाने को ।।
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Harsh Pratap Singh writes beautiful Hindi Poetry.
“I believe in keep smiling.. smiles make everything perfect.”
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