आजकल घर पर अकेला हूँ।
अकेला बैठ सोचता हूँ,
कि मुसलसल एक उम्र गुज़र चुकी है।
यादों का एक बड़ा सा पिटारा संजोया है।
बेइंतहा मोहब्बत की है।
दिल भी कई बार टूटा है।
दिल के करीब अब भी कुछ चेहरे हैं।
उन चेहरों से दूर घर पर अकेले।
उनके साथ गुजारे वो,
हर एक हसीन पल याद आते हैं।
वो यारों के संग,
कहीं दूर निकल जाना।
वो किसी की आंखों में,
खुद को देख यूं शर्मा जाना।
और उनको बाहों में लिए बस,
वक्त को गुजरते देखना और मुस्कुराना।
आजकल इन दीवारों में कैद,
नाराज़ सी इस ज़िन्दगी में,
सादगी और तन्हाई दोनों ही बरकरार है।
इस मायूस से कमरे में,
एक कोने पर धूल लगी कुछ किताबें,
एक पर पुरानी कुछ अखबारें और मेज पर,
मैं यूं ही बैठ उन हसीन पलों को याद कर,
कभी मुस्कुरा देता हूँ।
तो कभी कुछ लिख ही देता हूँ,
क्योंकि आजकल घर पर अकेला जो हूँ।
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Hello, I am Amit Kumar.
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